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NCERT Solutions for Class 12 Biology In Hindi Chapter 6 Molecular Basis of Inheritance In Hindi Medium

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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 Molecular Basis of Inheritance in Hindi Medium

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NCERT, which stands for The National Council of Educational Research and Training, is responsible for designing and publishing textbooks for all the classes and subjects. NCERT Textbooks covered all the topics and are applicable to the Central Board of Secondary Education (CBSE) and various state boards.


Class:

NCERT Solutions for Class 12

Subject:

Class 12 Biology

Chapter Name:

Chapter - 6 Molecular Basis of Inheritance

Content-Type:

Text, Videos, Images and PDF Format

Academic Year:

2024-25

Medium:

English and Hindi

Available Materials:

  • Chapter Wise

  • Exercise Wise

Other Materials

  • Important Questions

  • Revision Notes



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We, at Vedantu, offer free NCERT Solutions in English medium and Hindi medium for all the classes as well. Created by subject matter experts, these NCERT Solutions in Hindi are very helpful to the students of all classes. 

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Access NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter - 6 Molecular Basis of Inheritance

1. निम्न को नाइट्रोजनीकृत क्षार व न्यूक्लिओटाइड के रूप में वर्गीकृत कीजिए-एडेनीन, साइटीडीन, थाइमीन, ग्वानोसीन, यूरेसील व साइटोसीन।

उत्तर: नाइट्रोजनीकृत क्षार – एडेनीन, थाइमीन, यूरेसील, साइटोसीन।

न्यूक्लिओटाइड – साइटीडीन, ग्वानोसीन।


2. यदि एक द्विरज्जुक DNA में 20 प्रतिशत साइटोसीन है तो DNA में मिलने वाले एडेनीन के प्रतिशत की गणना कीजिए।

उत्तर: चारग्राफ के नियमानुसार द्विरज्जुक DNA में → A + G = T + C = 1 होता है।

अर्थात् एडेनीन = थाइमीन,

ग्वानिन = साइटोसीन

चूँकि साइटोसीन की दी गई मात्रा 20% है तो ग्वानिन भी 20% होगा।

ग्वानिन + साइटोसीन = 20 + 20 = 40%

A + G = 100 – 40%

A + G = 60%

चूँकि A = G होता है; अत: एडेनीन की मात्रा = 60/2 = 30% होगी।


3. यदि डी०एन०ए० के एकरज्जुक के अनुक्रम निम्नवत् लिखे हैं – 5′ – ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC – 3′

तो पूरक रज्जुक के अनुक्रम को 5 → 3 दिशा में लिखिए।

उत्तर: डी०एन०ए० द्विकुण्डली संरचना होती है अर्थात् यह दो पॉलिन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं से बना होता है। दोनों श्रृंखलाएँ प्रतिसमानान्तर ध्रुवणता रखती हैं। इसका तात्पर्य है यदि एक श्रृंखला की ध्रुवणता 5 से 3′ की ओर हो तो दूसरे की ध्रुवणता 3 से 5′ की तरफ होगी।

दोनों श्रृंखलाओं के नाइट्रोजनी क्षार परस्पर हाइड्रोजन बन्ध (bonds) द्वारा जुड़े रहते हैं। ऐडेनीन दो हाइड्रोजन बन्ध द्वारा थाइमीन (A = T) से और साइटोसीन तीन हाइड्रोजन बन्ध द्वारा ग्वानीन (C ≡ G) से जुड़े होते हैं। इसके फलस्वरूप प्यूरीन के विपरीत दिशा में पिरिमिडीन होता है। इससे डी०एन०ए० द्विकुण्डली के दोनों पॉलिन्यूक्लियोटाइड के मध्य समान दूरी बनी रहती है। अतः डी०एन०ए० के पूरक रज्जुक (श्रृंखला) में नाइट्रोजनीकृत क्षार का अनुक्रम निम्नवत् होगा –

5′ –ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC-3′

3′ - TACG TACG TACG TACG  TACG  TACG TACG-5' 


4. यदि अनुलेखन इकाई में कूट लेखन रज्जुक के अनुक्रम को निम्नवत् लिखा गया है –

5′ – ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC–3′

तो दूत-आर०एन०ए० के अनुक्रम को लिखिए।

उत्तर: आर०एन०ए० का निर्माण डी०एन०ए० से होता है। आर०एन०ए० सामान्यतया एकरज्जुकी संरचना होती है। इसमें थाइमीन नाइट्रोजनीकृत क्षार के स्थान पर यूरेसिल पाया जाता है। डी०एन०ए० का एकरज्जुक (अनुलेखन इकाई) से आनुवंशिक सूचनाओं का दूत-आर०एन०ए० में प्रतिलिपिकरण करने की प्रक्रिया अनुलेखन कहलाती है।

यदि कूटलेखन रज्जुक के अनुक्रम निम्नवत् हैं –

5′ – ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC ATGC – 3’।

तो दूत-आर०एन०ए० (m-R.N.A.) के अनुक्रम निम्नवत् होंगे –

3'- UACG UACG UACG UACG UACG UACG UACG- 5'


5. DNA द्वी कुंडली की कौन-सी विशेषता ने वाटसन व क्रिक को DNA प्रतिकृति के सेमी कंजर्वेटिव रूप को कल्पित करने में सहयोग किया? इसकी व्याख्या कीजिए।

उत्तर: वाटसन व क्रिक ने DNA का द्विकुंडली मॉडल दिया था। इस मॉडल की मुख्य विशेषता पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाओं के बीच युग्मन का होना था। पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाओं में क्षार युग्मन ही एक ऐसी विशेषता थी जिसने वाटसन व क्रिक को DNA प्रतिकृति के सेमी कंजर्वेटिव रूप को कल्पित करने में सहयोग किया था। क्षार-युग्मन के इसी गुण के आधार पर श्रृंखलाएँ एक-दूसरे की पूरक बनती हैं अर्थात् एक DNA रज्जुक में क्षार अनुक्रम पता होने पर दूसरे रज्जुक के क्षार युग्मन को ज्ञात किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त DNA का प्रत्येक रज्जुक, नये DNA रज्जुक के संश्लेषण हेतु साँचे का कार्य करता है। इस साँचे से बना द्विकुंडलित DNA अपने जनक DNA के समरूप होता है। DNA प्रतिकृतिकरण की सेमी कंजर्वेटिव पद्धति में DNA के दोनों रज्जुक पृथक् होकर नये रज्जुक के संश्लेषण हेतु साँचे के समान कार्य करते हैं। DNA प्रतिकृति में एक जनक रज्जुक व एक नया रज्जुक होता है।


6. टेम्पलेट (डी०एन०ए० या आर०एन०ए०) की रासायनिक प्रकृति व इससे (डी०एन०ए० या आर०एन०ए०) संश्लेषित न्यूक्लीक अम्लों की प्रकृति के आधार पर न्यूक्लीक अम्ल पॉलिमरेज के विभिन्न प्रकार की सूची बनाइए।

उत्तर: न्यूक्लिक अम्ल पॉलिमरेज निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

1. डी०एन०ए० पॉलिमरेज एन्जाइम प्रतिकृति के लिए आवश्यक है। यह डी०एन०ए० टेम्पलेट का उपयोग डि-ऑक्सीन्यूक्लियोटाइड के बहुलकन को प्रेरित करने के लिए करता है। डी०एन०ए० अणुओं की दोनों श्रृंखलाएँ एकसाथ पृथक् नहीं होतीं। डी०एन०ए० द्विकुण्डली प्रतिकृति हेतु छोटे-छोटे भागों में खुलती है। इसके फलस्वरूप बनने वाले खण्ड परस्पर डी०एन०ए० लाइगेज एन्जाइम द्वारा जुड़ जाते हैं। डी०एन०ए० पॉलिमरेज स्वयं प्रतिकृति प्रक्रम का प्रारम्भ नहीं कर सकते। यह कुछ निश्चित स्थल पर संवाहक (vector) की सहायता से होती है।

2. आर०एन०ए० पॉलिमरेज – यह डी०एन०ए० पर निर्भर आर०एन०ए० पॉलिमरेज होता है। यह D.N.A. को सभी प्रकार के आर०एन०ए० के अनुलेखन के लिए उत्प्रेरित करता है। आर०एन०ए० पॉलिमरेजे अस्थायी रूप से प्रारम्भन कारक या समापन कारक से जुड़कर अनुलेखन का प्रारम्भ या समापन करता है। केन्द्रक में डी०एन०ए० पर निर्भर आर०एन०ए० पॉलिमरेज के अतिरिक्त निम्नलिखित तीन प्रकार के आर०एन०ए० पॉलिमरेज मिलते हैं –

आर०एन०ए० पॉलिमरेज I – यह राइबोसोमल आर०एन०ए० (r-R.N.A.) को अनुलेखित करता है।

आर०एन०ए० पॉलिमरेज III – यह ट्रान्सफर आर०एन०ए० (t-R.N.A.) तथा छोटे केन्द्रकीय आर०एन०ए० के अनुलेखन के लिए उत्तरदायी होता है।

आर०एन०ए० पॉलिमरेज II – यह सन्देशवाहक आर०एन०ए० (m-R.N.A.) के पूर्ववर्ती विषमांगी केन्द्रकीय आर०एन०ए० का अनुलेखन करता है।


7. DNA आनुवंशिक पदार्थ है, इसे सिद्ध करने हेतु अपने प्रयोग के दौरान हर्षे व चेज ने DNA व प्रोटीन के बीच कैसे अंतर स्थापित किया?

उत्तर: हर्शे वे चेज ने DNA को आनुवंशिक पदार्थ सिद्ध करने हेतु (P32) व (S 32) आइसोटॉप्स युक्त माध्यम, में ई० कोलाई जीवाणु का संवर्द्धन कराया। कुछ समय वृद्धि करने के पश्चात् जीवाणु को जीवाणुभोजी द्वारा संक्रमित कराया गया। संक्रमण के पश्चात् देखा गया कि जीवाणुभोजी का प्रोटीन आवरण (S35) रेडियोधर्मी युक्त हो गया था जबकि इसके DNA में सल्फर नहीं होता। इसके विपरीत जीवाणुभोजी का DNA (P32) रेडियोधर्मी आइसोटॉप्स की उपस्थिति दिखा रहा था, क्योंकि DNA में


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फॉस्फोरस होता है। प्रोटीन आवरण में P32 अनुपस्थित था। P32 रेडियोधर्मी युक्त जीवाणुभोजी द्वारा ऐसे जीवाणु को संक्रमित कराया गया जिसमें रेडियोधर्मी तत्त्व नहीं थे। संक्रमण के पश्चात् देखा गया कि समस्त जीवाणु रेडियोधर्मी हो गये थे। अधिकांश रेडियोधर्मी आइसोटॉप्स जीवाणुभोजी की अगली पीढ़ी में भी स्थानांतरित हो गये थे।रेडियोधर्मी तत्त्व रहित जीवाणुओं में S32 युक्त जीवाणुभोजी द्वारा संक्रमण कराने पर तथा जीवाणुभोजी पृथक् करने पर देखा गया कि जीवाणुओं में रेडियोधर्मी तत्त्व मौजूद नहीं थे बल्कि ये जीवाणुभोजी के प्रोटीन आवरण में ही रह गये थे। उपरोक्त प्रयोग सिद्ध करता है कि जीवाणुभोजी का DNA ही वह पदार्थ है जो नये जीवाणुभोजी उत्पन्न करता है व संक्रमण में भाग लेता है। यह सिद्ध हो गया कि DNA आनुवंशिक पदार्थ है, प्रोटीन नहीं। इसके अतिरिक्त DNA फॉस्फोरस युक्त होता है जबकि प्रोटीन में फॉस्फोरस नहीं होता है। DNA सल्फर रहित होता है, जबकि प्रोटीन, सल्फर युक्त होता है।


8. निम्न के बीच अंतर बताइए –

(क) पुनरावृत्ति DNA एवं अनुषंगी DNA

(ख) mRNA और tRNA

(ग) टेम्पलेट रज्जु और कोडिंग रज्जु

उत्तर:  (क) पुनरावृत्ति DNA एवं अनुषंगी DNA में अंतर

पुनरावृत्ति DNA 

अनुषंगी DNA

इसको नाइट्रोजन क्षारों के समान अनुक्रमों की अनेक  प्रतिलिपियां पाई जाती है। जिस DNA पर क्षार अनुक्रमों की एकल प्रतिलिपि पाई जाती है जिसे विशिष्ट डीएनए कहते हैं । इस पर सक्रिय जींस पाए जाते हैं। 

यह पुनरावृत DNA का वह भाग होता जिस पर लंबे पुनरावृत न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम पाए जाते हैं। यह दो प्रकार का होता है - सूक्ष्म अनुषंगी DNA तथा लघुअनुषंगी DNA । 


(ख) mRNA और tRNA

उत्तर: एमआरएनए और टीआरएनए में अंतर-

                      एमआरएनए 

                          टीआरएनए

mRNA को संदेश वाहक आरएनए कहते हैं। यह राइबोसोम की सतह पर प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करते हैं तथा डीएनए में उपस्थित अनुवांशिक संदेशों को कोडाॅन के रूप में केंद्रक से कोशिका द्रव में पहुंचाते हैं। यह कुल कोशिकीय  RNA का 3 - 5% होता है। इसका अवसादन गुणांक 8 S होता है। 

tRNA को स्थानांतरण RNA कहते हैं। इन का मुख्य कार्य अमीनो अम्ल के अणुओं को पकड़कर राइबोसोम पर लाना है तथा संदेशवाहक RNA  अणुओं की सहायता से इन्हें जोड़कर प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करना है। यह कुल कोशिकीय  RNA का 10 - 20% होता है। इसका अवसादन गुणांक 3.8 S होता है। 


(ग) टेम्पलेट रज्जु और कोडिंग रज्जु

उत्तर: टेम्पलेट रज्जु और कोडिंग रज्जु में अंतर-

                          टेम्पलेट रज्जु 

                        कोडिंग रज्जु 

DNA द्विकुंडली रज्जुक होता है।  DNA के जिस रज्जुक का ध्रुवत्व 3' से 5'  की ओर होता है उसे टेम्पलेट रज्जुक कहते हैं । क्योंकि यह  टेम्पलेट की तरह कार्य करता है

जिस रज्जुक का ध्रुवत्व 5' से 3'  की ओर होता है व अनुक्रम RNA जैसा होता है , अनुलेखन के समय स्थानांतरित हो जाता है । यह किसी के लिए भी कोडाॅन  का कार्य नहीं करता।  इसे कोडिंग रज्जुक कहते हैं। 


9.स्थानान्तरण के दौरान राइबोसोम की दो मुख्य भूमिकाओं की सूची बनाइए।

उत्तर: (स्थानान्तरण) –  इस प्रक्रिया में ऐमीनो अम्लों के बहुलकन से पॉलिपेप्टाइड का निर्माण होता है। ऐमीनो अम्लों के क्रम व अनुक्रम सन्देशवाहक आर०एन०ए० में पाए जाने वाले क्षारों के अनुक्रम पर निर्भर करते हैं। ऐमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं। स्थानान्तरण प्रक्रिया पूर्ण होने पर पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला राइबोसोम से पृथक् हो जाती है।


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स्थानान्तरण में राइबोसोम की भूमिका-

1. राइबोसोम का छोटा सबयूनिट m-R.N.A. के प्रथम कोडॉन (AUG) के साथ बन्धित होकर समारम्भ कॉम्प्लैक्स (initiation complex) ऐमीनो ऐसिल t-R.N.A. बनाता है जिसकी पहचान प्रारम्भक t-R.N.A. द्वारा की जाती है। ऐमीनो अम्ल t-R.N.A. से जुड़कर एक जटिल रचना बनाते हैं जो आगे चलकर t-R.N.A. के प्रति प्रकूट से पूरक क्षार युग्म बनाकर m-R.N.A. के उचित आनुवंशिक कोडॉन से जुड़ जाती है।

2. राइबोसोम के बड़े सबयूनिट पर t-R.N.A. अणुओं के जुड़ने के लिए दो खाँच होती हैं, इन्हें P-site या दाता स्थल और A-site या ग्राही स्थल कहते हैं। P-site (दाता-स्थल) पर पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला को धारण करने वाला t-R.N.A. जुड़ता है। A-site (ग्राही स्थल) पर ऐमीनो ऐसिल t-R.N.A. जुड़ता है। बड़े सबयूनिट के पेप्टाइड सिन्थेटेज एन्जाइम पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला के ऐमीनो अम्ल के -COOH तथा ऐमीनो ऐसिल t-R.N.A. के ऐमीनो अम्ल के – NH, के मध्य पेप्टाइड बन्ध बनाता है।


10. उस संवर्धन में जहाँ ई० कोलाई वृद्धि कर रहा हो लैक्टोस डालने पर लैक-ओपेरॉन उत्प्रेरित होता है, तब कभी संवर्धन में लैक्टोस डालने पर लैक-ओपेरॉन कार्य करना क्यों बन्द कर देता है?

उत्तर: ओपेरॉन संकल्पना-

मनुष्य की आँत में पाए जाने वाले जीवाणु ई० कोलाई सामान्यतया लैक्टोस के अपचय से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। जैकब एवं मोनोड (1961) ने पता लगाया कि इसके D.N.A. में तीन जीन का एक समूह लैक्टोस का अपचय करने वाले तीन एन्जाइम्स के संश्लेषण से सम्बन्धित होता है। पोषण माध्यम में लैक्टोस होता है तो ये जीन सक्रिय होते हैं। पोषण माध्यम में लैक्टोस के अभाव में ये निष्क्रिय रहते हैं। जैकब एवं मोनोड ने इस जीन की सक्रियता के नियमन के लिए ओपेरॉन संकल्पना प्रस्तुत की।

ओपेरॉन संकल्पना के अनुसार जीन की सक्रियता का नियमन अनुलेखन स्तर पर प्रेरण या दमन (induction or repression) द्वारा होता है। लैक्टोस का अपचय करने वाले एन्जाइम्स β – गैलेक्टोसाइडेज,  गैलेक्टोस परमीएज तथा थायोगैलेक्टोसाइडेज ट्रान्सऐसीटिलेज हैं। इनके संरचनात्मक जीन्स को क्रमशः सिस्ट्रॉन-z, सिस्ट्रॉन-y तथा सिस्ट्रॉन-a द्वारा प्रदर्शित करते हैं। ये एक-दूसरे के निकट स्थित होते हैं। इनमें परस्पर समन्वय होता है।

तीन जीन इनको कन्ट्रोल करते हैं, इन्हें रेगुलेटर जीन , प्रोमोटर जीन तथा ओपरेटर जीन कहते हैं। किसी उपापचयी तन्त्र में एन्जाइम्स को कोड करने वाले जीन सामान्यतया समूह (cluster) के रूप में गुणसूत्र पर स्थित होती हैं। ये एक कार्यक जटिल बनाती हैं। इस पूरे तन्त्र को लैक ओपेरॉन कहते हैं। इसमें संरचनात्मक जीन , प्रोमोटर जीन, ओपरेटर जीन तथा रेगुलेटर जीन आदि मिलती हैं।लैक ओपेरॉन = रेगुलेटर जीन + प्रोमोटर जीन + ओपेरेटर जीन + संरचनात्मक जीन लैक ओपेरॉन का प्रकार्य

(A) लैक्टोस की अनुपस्थिति में – लैक्टोस की अनुपस्थिति मेंरेगुलेटर जीन एक लैक निरोधक या दमनकारी प्रोटीन बनाता है। यह ओपरेटर जीन से बन्धित होकर इसके अनुलेखन को रोकता है। इसके फलस्वरूप संरचनात्मक जीन m-R.N.A.


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का संश्लेषण नहीं कर पाते और प्रोटीन संश्लेषण रुक जाता है। यह दमनकर का उदाहरण है।

(B) लैक्टोस की उपस्थिति में  – माध्यम में लैक्टोस प्रेरक के उपस्थित होने पर प्रोमोटर कोशिका में प्रवेश करके रेगुलेटर जीन से उत्पन्न दमनकर से बन्धित होकर जटिल यौगिक बनाता है। इसके कारण दमनकर ओपरेटर से बन्धित नहीं हो पाता। और ओपरेटर स्वतन्त्र रहता है। यह R.N.A.-पॉलिमरेज को प्रोमोटर जीन के समारम्भन स्थल से बन्धित होने के लिए प्रेरित करता है जिसके फलस्वरूप पॉलिसिस्ट्रोनिक लैक (m-R.N.A.)का अनुलेखन होता है। यह लैक्टोस अपचय के लिए आवश्यक तीनों एन्जाइम्स को कोडित करता है। इस क्रिया को एन्जाइम उत्प्रेरण कहते हैं। यह उत्प्रेरण या प्रेरण का उदाहरण है। इसमें लैक्टोस उत्प्रेरक का कार्य करता है।

(C) सहदमनकर– कभी-कभी मेटाबोलाइट (लैक्टोस) से बन्धित होने पर निरोधक या दमनकर की संरचना में परिवर्तन हो जाता है। यह ओपरेटर से बन्धित होकर इसके अनुलेखन (transcription) को रोकता है। इसमें मेटाबोलाइट (लैक्टोस) को सहदमनकर कहते हैं, क्योंकि यह ओपरेटर स्थलको निष्क्रिय करने के लिए दमनकर को सक्रिय करता है।


11. निम्न के कार्यों का वर्णन (एक अथवा दो पंक्तियों में) कीजिए –

उन्नायक (प्रोमोटर)

उत्तर: प्रोमोटर– DNA का यह अनुक्रम जीन अनुलेखन इकाई बनाता है तथा अनुलेखन इकाई में स्थित टेम्पलेट व कूटलेखन रज्जुक का निर्धारण करता है।

अन्तरण आर०एन०ए० (t-RNA)

उत्तर: tRNA –  tRNA प्रोटीन संश्लेषण के दौरान अमीनो अम्लों को कोशिकाद्रव्य से राइबोसोम तक स्थानान्तरित करता है।

एक्जॉन (Exons)

उत्तर: एक्जॉन – एक्जॉन में नाइट्रोजनी क्षारकों का अनुक्रम होता है तथा ये (mRNA) के संश्लेषण में सहायता करते हैं।


12. मानव जीनोम परियोजना को महापरियोजना क्यों कहा जाता है?

उत्तर: मानव जीनोम परियोजना एक अत्यन्त व्यापक स्तर की योजना है जिसके अन्तर्गत मनुष्य के जीनोम में उपस्थित समस्त जीनों की पहचान की जाती है। मानव जीनोम में 3 x 109 क्षार युग्म हैं तथा प्रति क्षार पहचानने के लिए तीन अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है। इस प्रकार संपूर्ण योजना पर लगभग 9 मिलियन डॉलर का खर्च आएगा। ज्ञात अनुक्रमों का संग्रह करने के लिए 1000 पृष्ठों की लगभग 3300 पुस्तकों की आवश्यकता होगी, यदि प्रत्येक पृष्ठ पर 10000 शब्द लिखे जायें। इस योजना को पूरी होने में 13 वर्ष का समय अनुमानित किया गया है। अनेक देशों के हजारों वैज्ञानिक एक साथ इस पर कार्य करते हैं तो इसकी प्रथम प्रक्रिया पूर्ण होने में 10 वर्ष का समय लगता है। इतने स्तर के आँकड़ों के संग्रह, समापन व विश्लेषण के लिए उच्च कोटि के सांख्यिकीय साधनों की आवश्यकता होगी। अतः अपने इस वृहद् स्तर के कारण यह योजना, महापरियोजना कहलाती है।


13. डी०एन०ए० अंगुलिछापी क्या है? इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर: डी०एन०ए० अंगुलिछापी- डी०एन०ए० फिंगर प्रिन्टिंग तकनीक (अंगुलिछापी) को सर्वप्रथम एलेक जेफ्रे ने इंग्लैण्ड में विकसित किया था। इसकी सहायता से विभिन्न व्यक्तियों अथवा जीवधारियों के मूल आनुवंशिक पदार्थ (D.N.A.) में भिन्नताओं को देखा जा सकता है। जैसा कि ज्ञात है कि जीवधारी की प्रजाति के सभी सदस्यों के डी०एन०ए० प्रारूप भिन्न होते हैं। यही कारण है कि समरूपी जुड़वाँ को छोड़कर किसी भी व्यक्ति का फिंगर प्रिन्ट एक-दूसरे से मेल नहीं करता। प्रत्येक जीवधारी की सभी कोशिकाओं में एक जैसा डी०एन०ए० पाया जाता है। डी०एन०ए० के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है। डी०एन०ए० के फिंगर प्रिन्टिग द्वारा डी०एन०ए० में स्थित उन क्षेत्रों की पहचान की जाती है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में किसी भी मात्रा में भिन्नता दर्शाते हैं। डी०एन०ए० के इन्हीं क्षेत्रों के कारण शरीर में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। इन विभिन्नता दर्शाने वाले सैटेलाइट डी०एन०ए० को प्रोब (परीक्षण करने वाली सलाई) की भाँति प्रयोग करते हैं। इसमें काफी बहुरूपता होती है। एक्स-रे फिल्म पर एक पट्टिकाओं के क्रम के रूप में प्राप्त करके उनकी स्थिति, विशिष्टता और पहचान कर सकते हैं। किसी एक व्यक्ति के डी०एन०ए० के क्रम पट्टियों के रूप में अनिवार्य रूप से विशिष्ट होते हैं। समरूप जुड़वाँ के डी०एन०ए० पूर्णरूपेण समरूप हो सकते हैं।


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इन पट्टियों का परिचित्र इलेक्ट्रोफोरेसिस तथा एक रेडियोऐक्टिव पदार्थ की सहायता से प्राप्त किया जाती है। विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में क्षारों की मात्रा विलोमानुपाती ढंग से दूरियाँ तय करती है जो कि बैण्ड्स या पट्टिकाओं के रूप में दृष्टिगोचर होती है।डी०एन०ए० फिंगर प्रिन्ट विभिन्न ऊतकों (खून, बाल पुटक, त्वचा, अस्थि, लार, शुक्राणु आदि) से प्राप्त किए जा सकते हैं। डी०एन०ए० फिंगर प्रिन्ट का उपयोग अपराध मामलों जैसे-खूनी, बलात्कारी को पहचानने के लिए, पितृत्व के झगड़ों में पारिवारिक सम्बन्धों को ज्ञात करने आदि में किया जाता है।


14. निम्न का संक्षिप्त वर्णन कीजिए :-

अनुलेखन-

उत्तर: अनुलेखन – DNA के रज्जुक में कूट के रूप में निहित आनुवंशिक सूचनाओं का mRNA में प्रतिलिपिकरण, अनुलेखन कहलाता है। इस प्रक्रिया के लिए RNA पॉलीमरेज नामक एंजाइम सहायक होता है। सर्वप्रथम DNA के न्यूक्लिओटाइड्स बनते हैं। तत्पश्चात् DNA रज्जुक अलग होकर साँचे के समान कार्य करने लगते हैं जिसके अनुसार नयी श्रृंखला में क्षारक क्रम व्यवस्थित होते हैं व H-बंधों द्वारा आपस में जुड़ जाते हैं।


बहुरूपता-

उत्तर. बहुरूपता – जीन जनसंख्या में आनुवंशिक उत्परिवर्तनों का, उच्च आवृत्ति में होना, बहुरूपता कहलाता है। ऐसे उत्परिवर्तन DNA अनुक्रमों के परिवर्तित होने के कारण उत्पन्न होते हैं तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशागत होकर एकत्रित होते हैं तथा बहुरूपता का कारण बनते हैं। बहुरूपता अनेक प्रकार की होती है तथा इसमें एक ही न्यूक्लिओटाइड में अथवा वृहद स्तर पर परिवर्तन होते हैं।


स्थानांतरण-

उत्तर: स्थानान्तरण – mRNA न्यूक्लिओटाइड की श्रृंखलाओं का अमीनो अम्ल की | पॉलीपेप्टाइड शृंखलाओं में परिवर्तित होना, स्थानान्तरण कहलाता है। यह प्रक्रिया राइबोसोम पर, प्रोटीन संश्लेषण के दौरान होती है। इसमें सर्वप्रथम एंजाइम व ATP द्वारा अमीनो अम्ल का सक्रियकरण होता है। सक्रिय अमीनो अम्ल tRNA पर स्थानांतरित होते हैं वे संश्लेषण प्रारंभ हो जाता है। तत्पश्चात् पॉलीपेप्टाइड अनुक्रम निर्धारित होते हैं। tRNA अणुओं के मध्य उपस्थित पेप्टाइड स्थल द्वारा पेप्टाइड बंध निर्मित होते हैं।


जैव सूचना विज्ञान-

उत्तर: जैव सूचना विज्ञान – जीव विज्ञान का वह क्षेत्र जिसके अंतर्गत जीवों के जीनोम संबंधी आँकड़ों का संग्रह, विश्लेषण किया जाता है, जैव सूचना विज्ञान कहलाता है। इसमें मानव जीनोम के मानचित्र बनाये जाते हैं वे DNA के अनुक्रमों को पंक्तिबद्ध किया जाता है। इसका उपयोग कृषि सुधार, ऊर्जा उत्पादन, पर्यावरण सुधार, स्वास्थ्य सुरक्षा आदि में किया जाता है।


NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 Molecular Basis of Inheritance in Hindi

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FAQs on NCERT Solutions for Class 12 Biology In Hindi Chapter 6 Molecular Basis of Inheritance In Hindi Medium

1. How do NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 help students master the concept of the molecular basis of inheritance?

NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 provide step-by-step explanations as per the CBSE 2025–26 guidelines, clarifying complex topics like DNA structure, gene expression, and genetic code. By following these solutions, students gain in-depth conceptual understanding and learn the correct format for answering exam questions effectively.

2. What is the standard CBSE methodology recommended in NCERT Solutions for solving genetic cross problems in this chapter?

The standard approach involves:

  • Identifying parental genotypes and phenotypes
  • Setting up Punnett squares to trace allele combinations
  • Clearly stating segregation and independent assortment rules
  • Providing a stepwise explanation for genotype and phenotype ratios
This structured method is in line with NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 expectations.

3. How does the NCERT Solutions approach simplify understanding DNA replication for board preparations?

The solutions break down DNA replication into precise, easy-to-follow steps adhering to the CBSE marking scheme, such as:

  • Initiation at the origin of replication
  • Unwinding by helicase
  • Action of DNA polymerase and synthesis directionality
  • Role of Okazaki fragments and ligase
This clarity helps students avoid common conceptual errors.

4. Why is stepwise answering important in NCERT Solutions for molecular biology concepts?

Stepwise answering ensures logical progression, making explanations easy for the examiner to follow and awarding marks for each correct step. This format, as shown in NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 6, enables students to secure full marks even if the final answer is partially incorrect but methodologically correct.

5. Describe a common misconception related to gene regulation and how the NCERT Solutions clarify it.

A frequent misconception is treating all genes as constitutively active. NCERT Solutions clarify with examples like the Lac operon that gene expression is often regulated by inducers, repressors, and environmental cues, highlighting both prokaryotic and eukaryotic gene regulation mechanisms.

6. In what way do the solutions connect the topic of polymorphism with DNA fingerprinting applications?

NCERT Solutions for this chapter explain that polymorphism refers to genetic variations in populations. These variations form the basis for unique DNA profiles, which are used in DNA fingerprinting for identity verification and forensic analysis, connecting textbook knowledge to real-world applications.

7. What is the process for writing complementary DNA and mRNA sequences as shown in stepwise solutions?

Begin by identifying the nucleotide sequence of the coding strand (5' to 3'), then apply base-pairing rules:

  • For complementary DNA: A pairs with T, and C with G
  • For mRNA: Replace thymine (T) with uracil (U)
NCERT Solutions illustrate these transformations with examples for clarity.

8. How does the NCERT Solutions methodology facilitate understanding the semi-conservative nature of DNA replication?

By detailing the Watson and Crick model and Meselson-Stahl experiment in a stepwise format, the solutions guide students through experimental setup, observation, and inference, emphasizing why one parental and one new strand are present in each daughter DNA molecule.

9. If a student struggles with interpreting the human genome project section, what strategy do the stepwise solutions provide?

The solutions recommend breaking down the Human Genome Project into

  • Goals
  • Methodology
  • Findings and significance
Using bullet points and sequential steps, the approach ensures clarity and helps remember key facts for board exams.

10. Why is it essential to follow the NCERT Solutions-based step-by-step approach in board answers for molecular basis of inheritance versus direct shortcuts?

Step-by-step approaches align with CBSE's marking scheme, award partial marks for method, and demonstrate comprehensive understanding, reducing the risk of missing points compared to vague or shortcut answers. NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 exemplify this pattern.

11. What should students keep in mind about the structure and function differences between DNA and RNA when using NCERT Solutions?

NCERT Solutions emphasise that:

  • DNA is double-stranded, contains deoxyribose sugar, and has thymine
  • RNA is usually single-stranded, contains ribose, and has uracil instead of thymine
Understanding these differences helps in solving exam questions involving transcription and translation.

12. How do stepwise solutions address conceptual traps in molecular inheritance, such as confusing coding and template strands?

NCERT Solutions provide clear definitions, diagrams, and practical identification tips that help students distinguish coding strands (sense) from template strands (antisense), ensuring that the direction of transcription and nature of synthesized mRNA are always correctly identified.